देशज समुदायों के लिए नि:शुल्क, पूर्व और सूचित सहमति (एफ़पीआईसी) का अधिकार अंतराष्ट्रीय कानून द्वारा मान्यता प्राप्त अधिकार है, जो आत्मनिर्णय के अधिकार, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को स्वतंत्र रूप से अनुसरण करने के अधिकार व व्यक्तिगत मानवाधिकार से निकलता है.
The देशज लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा ((यु.एन.डी.आर.आई.पी.)को संयुक्त राष्ट्र के महासभा द्वारा वर्ष-2007 में अपनाया गया था. यु.एन.डी.आर.आई.पी. निम्न परिस्थितियों में एफ़पीआईसी के अधिकारों को स्पष्ट रूप से वर्णित करता है.
- नए स्थान पर बसाने से पहले (अनुच्छेद 10)
- देशज लोगों के सांस्कृतिक, बौद्धिक, धार्मिक और आध्यात्मिक संपत्ति के उपयोग से पहले (अनुच्छेद 11)
- देशज लोगों को प्रभावित करने वाले विधायी या प्रशासनिक उपायों के कार्यान्वयन शुरू होने से पहले (अनुच्छेद 19)
- भूमियों के उपयोग को शुरू होने से पहले (अनुच्छेद 28)
- देशज लोगों की भूमि पर खतरनाक सामानों के भंडारण या निपटान की प्रक्रिया शुरू होने से पहले (अनुच्छेद 29)
- देशज समुदायों के भूमि या क्षेत्रों और अन्य संसाधनों को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना "विशेष रूप से विकास अथवा खनिज, पानी या अन्य संसाधनों के खोज, विकास अथवा उपयोग के संबंध में” पर राज्य से मंजूरी मिलने से पहले (अनुच्छेद 32)
संयुक्त राष्ट्रमहासभा में पास किए गए प्रस्ताव के अनुसार यु.एन.डी.आर.आई.पी. एक अंतराष्ट्रीय राजनीतिक वक्तव्य है. इसमें नैतिक शक्ति निहित है और कई सारे देशों में यह एक नीति विषयक दस्तावेज़ बन चुका है. जिन देशों ने इसे अपनाया है उनके न्यायतंत्र में इसे कानूनी ताकत देने के लिए इससे संबंधित राष्ट्रीय कानूनों की ज़रूरत है. फिर भी, बहुत सारे देश देशज लोगों को मान्यता नहीं देते हैं (या फिर केवल कुछ लोगों को मान्यता देते हैं) और एफ़.पी. आई. सी. को दरकिनार करते हैं.
अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आई. एल. ओ.) द्वारा श्रम संगठन (आई. एल. ओ.) द्वारा देशज और जनजातीय पीपुल्स कन्वेंशन (जिसे कन्वेंशन 169 भी कहा जाता है)1889 में अपनाया गया था, जो यह मानता है कि यदि विकास परियोजनाओं से देशज लोगों के अधिकार प्रभावित होते हैं और "जब भी विधायी या प्रशासनिक उपायों पर विचार किया जा रहा है जो उन्हें सीधे प्रभावित कर सकता है" (अनुच्छेद 6, पैराग्राफ 1 ए) तो उनसे परामर्श होना चाहिए. ILO 169 के लिए आवश्यक है कि इन परामर्शों को अच्छे विश्वास के साथ निभाया जाए और "इन परामर्शों का उद्देश्य समझौता या सहमति होना चाहिए" (अनुच्छेद 6, पैराग्राफ 2). अनुच्छेद 16 विशेष रूप से स्थानांतरण से पहले "सहमति" की आवश्यकता से संबंधित है। ILO 169 को 23 देशों ने स्वीकार किया है और उनमें यह संधि की स्थिति रखता है और उनके लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज है.
अन्य नीतियाँ और परिभाषाएं
जब परियोजनाएं देशज लोगों के अधिकारों को प्रभावित करती हैं तो कंपनियों को परामर्श देने और देशज
समुदायों से सहमति प्राप्त करने के मुद्दे पर कार्य करने के लिए कई अन्य स्वैच्छिक तंत्र मौजूद हैं, जैसे कि:
- निवेशक की ज़रूरतों के संबंध में, जैसा कि इंटरनेशनल फिनेंस कार्पोरेशन (आई. एफ़. सी.) परफॉर्मेंस स्टैंडर्ड 7, एकवेटर प्रिंसीपल, या ग्रीन क्लाइमेट फंड ..
- उद्योग संघ, जैसे इंटरनेशनल काउंसिल ऑन माइनिंग एंड मिनिरल्स (आईसीएमएम) का देशज लोगों और खनन तथा संबंधित आश्वासन आवश्यक्ताओं पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने हेतु बयान.
- स्वैच्छिक कॉर्पोरेट नीतियाँ
- स्वैच्छिक प्रमाणन योजनाओं में भागीदारी, जैसे कि इनिशिएटिव फॉर रेस्पांसबल माईनिंग (आईआरएमए) .
यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि यद्यपि कई कंपनियों ने या तो अपनी नीतियों में या अपनी वेबसाइटों पर एफ़.पी.आई.सी. के लिए सार्वजनिक प्रतिबद्धताओं की बात कह़ी है, लेकिन उनके पास एफ़.पी.आई.सी. को लागू करने के तरीकों को लेकर कोई स्पष्ट आंतरिक मार्गदर्शन नहीं है. इसलिए इस मार्गदर्शिका का मक़सद इस तरह के कार्यान्वयन को मज़बूती प्रदान करना है.
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